Saturday, August 20, 2011

नीरज के दोहे

बन्दर चूके डाल को, और आषाढ़ किसान
दोनों के ही लिए है ये गति मरण समान

(37)
चिडि़या है बिन पंख की कहते जिसको आयु
इससे ज्यादा तेज़ तो चले न कोई वायु

(38)
बुरे दिनों में कर नहीं कभी किसी से आस
परछाई भी साथ दे, जब तक रहे प्रकाश

(39)
यदि तुम पियो शराब तो इतना रखना याद
इस शराब ने हैं किये, कितने घर बर्बाद

(40)
जब कम हो घर में जगह हो कम ही सामान
उचित नहीं है जोड़ना तब ज्यादा मेहमान

(41)
रहे शाम से सुबह तक मय का नशा ख़ुमार
लेकिन धन का तो नशा कभी न उतरे यार

(42)
जीवन पीछे को नहीं आगे बढ़ता नित्य
नहीं पुरातन से कभी सजे नया साहित्य

(43)
रामराज्य में इस कदर फैली लूटम-लूट
दाम बुराई के बढ़े, सच्चाई पर छूट

(44)
स्नेह, शान्ति, सुख, सदा ही करते वहाँ निवास
निष्ठा जिस घर माँ बने, पिता बने विश्वास

(45)
जीवन का रस्ता पथिक सीधा सरल न जान
बहुत बार होते ग़लत मंज़िल के अनुमान

(46)
किया जाए नेता यहाँ, अच्छा वही शुमार
सच कहकर जो झूठ को देता गले उतार

(47)
जब से वो बरगद गिरा, बिछड़ी उसकी छाँव
लगता एक अनाथ-सा सबका सब वो गाँव

(48)
अपना देश महान् है, इसका क्या है अर्थ
आरक्षण हैं चार के, मगर एक है बर्थ

(49)
दीपक तो जलता यहाँ सिर्फ एक ही बार
दिल लेकिन वो चीज़ है जले हज़ारों बार

(50)
काग़ज़ की एक नाव पर मैं हूँ आज सवार
और इसी से है मुझे करना सागर पार

नीरज के दोहे


(1)
मौसम कैसा भी रहे कैसी चले बयार
बड़ा कठिन है भूलना पहला-पहला प्यार

(2)
भारत माँ के नयन दो हिन्दू-मुस्लिम जान
नहीं एक के बिना हो दूजे की पहचान

(3)
बिना दबाये रस न दें ज्यों नींबू और आम
दबे बिना पूरे न हों त्यों सरकारी काम

(4)
अमरीका में मिल गया जब से उन्हें प्रवेश
उनको भाता है नहीं अपना भारत देश

(5)
जब तक कुर्सी जमे खालू और दुखराम
तब तक भ्रष्टाचार को कैसे मिले विराम

(6)
पहले चारा चर गये अब खायेंगे देश
कुर्सी पर डाकू जमे धर नेता का भेष

(7)
कवियों की और चोर की गति है एक समान
दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान

(8)
गो मैं हूँ मँझधार में आज बिना पतवार
लेकिन कितनों को किया मैंने सागर पार

(9)
जब हो चारों ही तरफ घोर घना अँधियार
ऐसे में खद्योत भी पाते हैं सत्कार

(10)
जिनको जाना था यहाँ पढ़ने को स्कूल
जूतों पर पालिश करें वे भविष्य के फूल

(11)
भूखा पेट न जानता क्या है धर्म-अधर्म
बेच देय संतान तक, भूख न जाने शर्म

(12)
दोहा वर है और है कविता वधू कुलीन
जब इसकी भाँवर पड़ी जन्मे अर्थ नवीन

(13)
गागर में सागर भरे मुँदरी में नवरत्न
अगर न ये दोहा करे, है सब व्यर्थ प्रयत्न

(14)
जहाँ मरण जिसका लिखा वो बानक बन आए
मृत्यु नहीं जाये कहीं, व्यक्ति वहाँ खुद जाए

(15)
टी.वी.ने हम पर किया यूँ छुप-छुप कर वार
संस्कृति सब घायल हुई बिना तीर-तलवार

(16)
दूरभाष का देश में जब से हुआ प्रचार
तब से घर आते नहीं चिट्ठी पत्री तार

(17)
आँखों का पानी मरा हम सबका यूँ आज
सूख गये जल स्रोत सब इतनी आयी लाज

(18)
करें मिलावट फिर न क्यों व्यापारी व्यापार
जब कि मिलावट से बने रोज़ यहाँ सरकार

(19)
रुके नहीं कोई यहाँ नामी हो कि अनाम
कोई जाये सुबह् को कोई जाये शाम

(20)

ज्ञानी हो फिर भी न कर दुर्जन संग निवास
सर्प सर्प है, भले ही मणि हो उसके पास

(21)
अद्भुत इस गणतंत्र के अद्भुत हैं षडयंत्र
संत पड़े हैं जेल में, डाकू फिरें स्वतंत्र

(22)
राजनीति के खेल ये समझ सका है कौन
बहरों को भी बँट रहे अब मोबाइल फोन

(23)
राजनीति शतरंज है, विजय यहाँ वो पाय
जब राजा फँसता दिखे पैदल दे पिटवाय

(24)
भक्तों में कोई नहीं बड़ा सूर से नाम
उसने आँखों के बिना देख लिये घनश्याम

(25)
चील, बाज़ और गिद्ध अब घेरे हैं आकाश
कोयल, मैना, शुकों का पिंजड़ा है अधिवास

(26)
सेक्युलर होने का उन्हें जब से चढ़ा जुनून
पानी लगता है उन्हें हर हिन्दू का खून

(27)
हिन्दी, हिन्दू, हिन्द ही है इसकी पहचान
इसीलिए इस देश को कहते हिन्दुस्तान

(28)
रहा चिकित्साशास्त्र जो जनसेवा का कर्म
आज डॉक्टरों ने उसे बना दिया बेशर्म

(29)
दूध पिलाये हाथ जो डसे उसे भी साँप
दुष्ट न त्यागे दुष्टता कुछ भी कर लें आप

(30)
तोड़ो, मसलो या कि तुम उस पर डालो धूल
बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल

(31)
पूजा के सम पूज्य है जो भी हो व्यवसाय
उसमें ऐसे रमो ज्यों जल में दूध समाय

(32)
हम कितना जीवित रहे, इसका नहीं महत्व
हम कैसे जीवित रहे, यही तत्व अमरत्व

(33)
जीने को हमको मिले यद्यपि दिन दो-चार
जिएँ मगर हम इस तरह हर दिन बनें हजार

(34)
सेज है सूनी सजन बिन, फूलों के बिन बाग़
घर सूना बच्चों बिना, सेंदुर बिना सुहाग

(35)
यदि यूँ ही हावी रहा इक समुदाय विशेष
निश्चित होगा एक दिन खण्ड-खण्ड ये देश

(36)
बन्दर चूके डाल को, और आषाढ़ किसान
दोनों के ही लिए है ये गति मरण समान

(37)
चिडि़या है बिन पंख की कहते जिसको आयु
इससे ज्यादा तेज़ तो चले न कोई वायु

निदा फाजली

होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िन्दगी क्या चीज़ है

उन से नज़रें क्या मिली रोशन फिजाएँ हो गईं
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है

ख़ुलती ज़ुल्फ़ों ने सिखाई मौसमों को शायरी
झुकती आँखों ने बताया मयकशी क्या चीज़ है

हम लबों से कह न पाये उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है

Monday, July 11, 2011

अदावत दिल में रखते हैं मगर यारी दिखाते हैं
न जाने लोग भी क्या क्या अदाकारी दिखाते हैं

यक़ीनन उनका जी भरने लगा है मेज़बानी से
वो कुछ दिन से हमें जाती हुई लारी दिखाते हैं

उलझना है हमें बंजर ज़मीनों की हक़ीक़त से
उन्हें क्या, वो तो बस काग़ज़ पे फुलवारी दिखाते हैं

मदद करने से पहले तुम हक़ीक़त भी परख लेना
यहाँ पर आदतन कुछ लोग लाचारी दिखाते हैं

डराना चाहते हैं वो हमें भी धमकियाँ देकर
बड़े नादान हैं पानी को चिन्गारी दिखाते हैं

दरख़्तों की हिफ़ाज़त करने वालो डर नहीं जाना
दिखाने दो, अगर कुछ सरफिरे आरी दिखाते हैं

हिमाक़त क़ाबिले-तारीफ़ है उनकी ‘अकेला’जी
हमीं से काम है हमको ही रंगदारी दिखाते हैं

Thursday, February 24, 2011

कोई दीवाना कहता है ... डॉ कुमार विस्वास

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!

मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!

समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!

भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!

रंग दुनिया ने ---विश्वास जी

रंग दुनिया ने दिखाया है निराला, देखूँ,
है अँधेरे में उजाला, तो उजाला देखूँ
आइना रख दे मेरे हाथ में,आख़िर मैं भी,
कैसा लगता है तेरा चाहने वाला देखूँ
जिसके आँगन से खुले थे मेरे सारे रस्ते,
उस हवेली पे भला कैसे मैं ताला देखूँ

हर एक नदिया के होंठों पे समंदर का तराना है,
यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है
वही बातें पुरानी थीं, वही किस्सा पुराना है,
तुम्हारे और मेरे बीच में फिर से ज़माना है

भ्रमर कोई कुमुदनी पे मचल बैठा तो हंगामा ,
हमारे दिल में कोई ख़्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब के सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का ,
मैं किस्से को हक़ीकत में बदल बैठा तो हंगामा -

बहुत बिखरा, बहुत टूटा, थपेडे़ सह नही पाया ,
हवाओं के इशारों पे मगर मैं बह नहीं पाया
अधूरा अनसुना ही रह गया यूँ प्यार का किस्सा ,
कभी तुम सुन नही पाए, कभी मैं कह नही पाया

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है ,
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है ,
ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है