मुनव्वर राना

मुसलसल गेसुओं की बरहमी अच्छी नहीं होती
हवा सबके लिए ये मौसमी अच्छी नहीं होती

न जाने कब कहाँ पर कोई तुमसे ख़ूँ बहा माँगे
बदन में ख़ून की इतनी कमी अच्छी नहीं होती

ये हम भी जानते हैं ओढ़ने में लुत्फ़ आता है
मगर सुनते हैं चादर रेशमी अच्छी नहीं होती

ग़ज़ल तो प्फूल -से बच्चों की मीठी मुस्कुराहट है
ग़ज़ल के साथ इतनी रुस्तमी अच्छी नहीं होती

‘मुनव्वर’ माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ दीवार हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
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हम कभी जब दर्द के क़िस्सी सुनाने लग गये
लफ़्ज़ फिइलों की तरह ख़ुश्बू लुटाने लग गये

लौटते में कम पड़ेगी उम्र की पूँजी हमें
आप तक आने में ही हमको ज़माने लग गये

आपने आबाद वीराने किये होंगे बहुत
आपकी ख़ातिर मगर हम तो ठिकाने लग गये

दिल समन्दर के किनारों का वो हिस्सा है जहाँ
शाम होते ही बहुत -से शामियाने लग गये

बेबसी तेरी इनायत है कि हम भी आजकल
अपने आँसू अपने दामन पर बहाने लग गये

उँगलियाँ थामे हुए बच्चे चले स्कूल को
सुबह होते ही परन्दे चहचाहाने लग गये

कर्फ़्यू में और क्या करते मदद इक लाश की
बस अगरबती की सूरत हम सिरहाने लग गये
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जहाँ तक हो सका हमने तुम्हें परदा कराया है
मगर ऐ आँसुओ ! तुमने बहुत रुस्वा कराया है

चमक ऐसे नहीं आती है ख़ुद्दारी के चेहरे पर
अना को हमने दो-दो वक़्त का फ़ाक़ा कराया है

बड़ी मुद्दत पे पाई हैं ख़ुशी से गालियाँ हमने
बड़ी मुद्दत पे उसने आज मुँह मीठा कराया है

बिछड़ना उसकी ख़्वाहिश थी न मेरी आरज़ू लेकिन
ज़रा-सी ज़िद ने इस आँगन का बँटवारा कराया है

कहीं परदेस की रंगीनियों में खो नहीं जाना
किसी ने घर से चलते वक़्त ये वादा कराया है
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हर एक शख़्स खफ़ा-सा दिखाई देता है
चहार सम्त कुहासा दिखाई देता है

हर इक नदी उसे सैराब कर चुकी है मगर
समन्दर आज भी प्यासा दिखाई देता है

ज़रूरतों ने अजब हाल कर दिया है अब
तमाम जिस्म ही कासा दिखाई देता है

वहाँ पहुँच के ज़मीनों को भूल जाओगे
यहाँ से चाँद ज़रा-सा दिखाई देता है

खिलेंगे फूल अभी और भी जवानी के
अभी तो एक मुँहासा दिखाई देता है

मैं अपनी जान बचाकर निकल नहीं सकता
कि क़ातिलों में शनासा दिखाई देता है
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मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इससे ज़ियादा मैं तिरा हो नहीं सकता

दहलीज़ पे रख दी हैं किसी शख़्स ने आँखें
रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता

बस तू मिरी आवाज़ में आवाज़ मिला दे
फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता

ऎ मौत मुझे तूने मुसीबत से निकाला
सय्याद समझता था रिहा हो नहीं सकता

इस ख़ाकबदन को कभी पहुँचा दे वहाँ भी
क्या इतना करम बादे-सबा हो नहीं सकता

पेशानी को सजदे भी अता कर मिरे मौला
आँखों से तो यह क़र्ज़ अदा हो नहीं सकता

सय्याद=बहेलिया, शिकारी; बादे-सबा=बहती हवा; पेशानी=माथे
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आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए

आप दरिया हैं तो फिर इस वक़्त हम ख़तरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हम को पार होना चाहिए

ऐरे-ग़ैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों
आपको औतर नहीं अख़बार होना चाहिए

ज़िन्दगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें
टूटा- फूटा ही सही घरबार होना चाहिए

अपनी यादों से कहो एक दिन की छुट्टी दें मुझे
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए
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हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है
हम अब तन्हा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है

अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है

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