बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन 
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन 
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है 
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन 
2. 
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल एक ऐसा इकतारा है, 
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है. 
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर, 
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है. 
3. 
जो धरती से अम्बर जोड़े , उसका नाम मोहब्बत है , 
जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है , 
कतरा कतरा सागर तक तो ,जाती है हर उमर मगर , 
बहता दरिया वापस मोड़े , उसका नाम मोहब्बत है . 
4. 
बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेडे सह नही पाया 
हवाऒं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया 
रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा 
कभी तुम सुन नही पायी कभी मै कह नही पाया 
5. 
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ 
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ 
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन 
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ 
6. 
पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या 
जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या 
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश मे है 
हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या 
7. 
समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नही सकता 
ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नही सकता 
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले 
जो मेरा हो नही पाया वो तेरा हो नही सकता
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तुम अगर नही आई गीत गा न पाऊँगा 
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा 
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है 
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है 
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है 
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है 
रात की उदासी को याद संग खेला है  
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है 
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है 
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है 
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से 
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से 
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है 
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है 
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है 
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
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उनकी ख़ैरो-ख़बर नही मिलती 
हमको ही खासकर नही मिलती 
शायरी को नज़र नही मिलती 
मुझको तू ही अगर नही मिलती 
रूह मे, दिल में, जिस्म में, दुनिया  
ढूंढता हूँ मगर नही मिलती 
लोग कहते हैं रुह बिकती है 
मै जिधर  हूँ उधर नही मिलती
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सूरज पर प्रतिबंध अनेकों  
और भरोसा रातों पर 
नयन हमारे सीख रहे हैं  
हँसना झूठी बातों पर 
हमने जीवन की चौसर पर  
दाँव लगाए आँसू वाले 
कुछ लोगो ने हर पल, हर दिन  
मौके देखे बदले पाले 
हम शंकित सच पा अपने,  
वे मुग्ध स्वँय की घातों पर 
नयन हमारे सीख रहे हैं  
हँसना झूठी बातों पर 
हम तक आकर लौट गई हैं  
मौसम की बेशर्म कृपाएँ 
हमने सेहरे के संग बाँधी  
अपनी सब मासूम खताएँ 
हमने कभी न रखा स्वयँ को  
अवसर के अनुपातों पर 
नयन हमारे सीख रहे हैं  
हँसना झूठी बातों पर
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बादड़ियो गगरिया भर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
प्यासे तन-मन-जीवन को
इस बार तो तू तर कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
अंबर से अमृत बरसे 
तू बैठ महल मे तरसे
प्यासा ही मर जाएगा
बाहर तो आजा घर से
इस बार समन्दर अपना
बूँदों के हवाले कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
सबकी अरदास पता है 
रब को सब खास पता है
जो पानी मे घुल जाए
बस उसको प्यास पता है
बूँदों की लड़ी बिखरा दे
आँगन मे उजाले कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
प्यासे तन-मन-जीवन को
इस बार तू तर कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
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चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं 
ये वही पुरानी राहें हैं, ये दिन भी वही पुराने हैं 
कुछ तुम भूली कुछ मै भूला मंज़िल फिर से आसान हुई 
हम मिले अचानक जैसे फिर पहली पहली पहचान हुई 
आँखों ने पुनः पढी आँखें, न शिकवे हैं न ताने हैं 
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं 
तुमने शाने पर सिर रखकर, जब देखा फिर से एक बार 
जुड गया पुरानी वीणा का, जो टूट गया था एक तार 
फिर वही साज़ धडकन वाला फिर वही मिलन के गाने हैं 
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं 
आओ हम दोनो की सांसों  का एक वही आधार रहे 
सपने, उम्मीदें, प्यास मिटे, बस प्यार रहे बस प्यार रहे 
बस प्यार अमर है दुनिया मे सब रिश्ते आने-जाने हैं 
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं
तुमने शाने पर सिर रखकर, जब देखा फिर से एक बार 
जुड गया पुरानी वीणा का, जो टूट गया था एक तार 
फिर वही साज़ धडकन वाला फिर वही मिलन के गाने हैं 
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं 
आओ हम दोनो की सांसों  का एक वही आधार रहे 
सपने, उम्मीदें, प्यास मिटे, बस प्यार रहे बस प्यार रहे 
बस प्यार अमर है दुनिया मे सब रिश्ते आने-जाने हैं 
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं
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फिर पुराने नीम के नीचे खडा हूँ फिर पिता की याद आई है मुझे 
नीम सी यादें ह्रदय में चुप समेटे 
चारपाई डाल आँगन बीच लेटे 
सोचते हैं हित सदा उनके घरों का 
दूर है जो एक बेटी चार बेटे 
फिर कोई रख हाथ काँधे पर  
कहीं यह पूछता है- 
"क्यूँ अकेला हूँ भरी इस भीड मे"  
मै रो पडा हूँ 
फिर पिता की याद आई है मुझे 
फिर पुराने नीम के नीचे खडा हूँ 
 
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