बहुत हसीन-सा इक बाग़ घर के नीचे है
मगर सुकून पुराने शजर के नीचे है
मुझे कढ़े हुए तकियों की क्या ज़रूरत है
किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है
ये हौसला है जो मुझसे उख़ाब डरते हैं
नहीं तो गोश्त कहाँ बाल-ओ-पर के नीचे है
उभरती डूबती मौजें हमें बताती हैं
कि पुर सुकूत समन्दर भँवर के नीचे है
बिलख रहे हैं ज़मीनों पे भूख से बच्चे
मेरे बुज़ुर्गों की दौलत खण्डर के नीचे है
अब इससे बढ़ के मोहब्बत का कुछ सुबूत नहीं
कि आज तक तेरी तस्वीर सर के नीचे है
मुझे ख़बर नहीं जन्नत बड़ी कि माँ, लेकिन
बुज़ुर्ग कहते हैं जन्नत बशर के नीचे है
Friday, May 14, 2010
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