ऐन ख़्वाहिश के मुताबिक सब उसी को मिल गया
काम तो ठाकुर ! तुम्हारे आदमी को मिल गया
फिर तेरी यादों की शबनम ने जगाया है मुझे
फिर ग़ज़ल कहने का मौसम शायरी को मिल गया
याद रखना भीख माँगेंगे अँधेरे रहम की
रास्ता जिस दिन कहीं से रौशनी को मिल गया
इस लिए बेताब हैं आँसू निकलने के लिए
पाट चौड़ा आज आँखों की नदी को मिल गया
आज अपनी हर ग़लतफ़हमी पे बहुत हँसता हूँ मैं
साथ में मौक़ा मुनाफ़िक़ की हँसी को मिल गया
Monday, May 10, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment