बिछड़ा कहाँ है भाई हमारा सफ़र में है
ओझल नहीं हुआ है अभी तक नज़र में है
एक हादसे ने छीन लिया है उसे मगर
तसवीर उसकी फिर भी मेरी चश्म-ए-तर में है
वह तो लिखा के लाई है क़िस्मत में जागना
माँ कैसे सो सकेगी कि बेटा सफ़र में है
ख़ुद शाख़-ए-गुल को टूटते देखा है आँख से
किस दर्जा हौसला अभी बूढ़े शजर में है
तनहा मुझे कभी न समझना मेरे हरीफ़
एक भाई मर गया है, मगर एक घर में है
दुनिया से आख़िरत का सफ़र भी अजीब है
वह घर पहुँच गया है बदन रहगुज़र में है
सब ओढ़ लेंगे मिट्टी की चादर को एक दिन
दुनिया का हर चराग हवा की नज़र में है.
Monday, May 10, 2010
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