Friday, May 14, 2010

सफ़र का शौक --राना..

जो उसने लिक्खे थे ख़त कापियों में छोड़ आए
हम आज उसको बड़ी उलझनों में छोड़ आए

अगर हरीफ़ों में हता तो बच भी सकता था
ग़लत किया जो उसे दोस्तों में छोड़ आए

सफ़र का शौक़ भी कितना अजीब होता है
वो चेहरा भीगा हुआ आँसों में छोड़ आए

फिर उसके बाद वो आँखें कभी नहीं रोयीं
हम उनको ऐसी ग़लतफ़हमियों में छोड़ आए

महाज़-ए-जंग पे जाना बहुत ज़रूरी था
बिलखते बच्चे हम अपने घरों में छोड़ आए

जब एक वाक़्या बचपन का हमको याद आया
हम उन परिन्दों को फिर घोंसलों में छोड़ आए

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