Sunday, May 9, 2010

Maa -part 4

दौलत से मुहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन

बच्चों ने खिलौनों की तरफ़ देख लिया था


जिस्म पर मेरे बहुत शफ़्फ़ाफ़ कपड़े थे मगर

धूल मिट्टी में अटा बेटा बहुत अच्छा लगा


कम से बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर

ऐसे मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ


क़सम देता है बच्चों की, बहाने से बुलाता है

धुआँ चिमनी का हमको कारख़ाने से बुलाता है


बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद

अब जाग भी जाते हैं तो सहरी नहीं खाते


इन्हें फ़िरक़ा परस्ती मत सिखा देना कि ये बच्चे

ज़मी से चूम कर तितली के टूटे पर उठाते हैं


सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता

हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता


बिछड़ते वक़्त भी चेहरा नहीं उतरता है

यहाँ सरों से दुपट्टा नहीं उतरता है


कानों में कोई फूल भी हँस कर नहीं पहना

उसने भी बिछड़ कर कभी ज़ेवर नहीं पहना

munawwar rana

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