Tuesday, May 4, 2010

हमारी ज़िन्दगी का ---munawwar rana


हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है कभी तिरपाल कटता है

दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क आँखें तो दिखाने दो
कहीं बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है

इसी उलझन में अकसर रात आँखों में गुज़रती है
बरेली को बचाते हैं तो नैनीताल कटता है

कभी रातों के सन्नाटे में भी निकला करो घर से
कभी देखा करो गाड़ी से कैसे माल कटता है

सियासी वार भी तलवार से कुछ कम नहीं होता
कभी कश्मीर जाता है कभी बंगाल कटता है .

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