फ़रिश्ते आके उनके जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं
अँधेरी रात में अक्सर सुनहरी मिशअलें ले कर
परिन्दों की मुसीबत का पता जुगनू लगाते हैं
दिलों का हाल आसानी से कब मालूम होता है
कि पेशानी पे चन्दन तो सभी साधू लगाते हैं
ये माना आपको शोले बुझाने में महारत है
मगर वो आग जो मज़लूम के आँसू लगाते हैं
किसी के पाँव की आहट से दिल ऐसा उछलता है
छलाँगें जंगलों में जिस तरह आहू लगाते हैं
बहुत मुमकिन है अब मेरा चमन वीरान हो जाए
सियासत के शजर पर घोंसले उल्लू लगाते हैं
Friday, May 14, 2010
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