मेरी ख़्वाहिश कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
कम-से-बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर
ऐसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ
सोचता हूँ तो छलक उठती हैं मेरी आँखें
तेरे बारे में न सोचूँ तो अकेला हो जाऊँ
चारागर तेरी महारत पे यक़ीं है लेकिन
क्या ज़रूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊँ
बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं
शम्अ तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊँ
शायरी कुछ भी हो रुस्वा नहीं होने देती
मैं सियासत में चला जाऊँ तो नंगा हो जाऊँ.
Tuesday, May 4, 2010
maa --munawwar rana
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